अश्क

             II अश्क II

कितने आर्सो बीत गए,

आँख लगाके बैठे हैं के तुम आओगे II

अश्क हमारे सुख गए निकल के आखो से

अब तो झूमेगा  गगन शीतल फिजा से II

तीतर बितर हुई हैं  कायनात सारी

जल रही हैं धरती जल रहा हैं आसमा


 जाने मशगूल हो कौनसी दुनिया में II

इन्तहा करू तो मैं कितनी तेरे दर से जाऊ  मैं

गला घोटके मार दे मुझे या चढ़ जाऊ मैं फंदे पे II

गायों का बछड़ा अब टूट गया हैं ,

ना मिल रहा हैं पानी ना खाना नसीब में II


तुम बस देख रहे हो आँख बन्द करकें,


कवी 

संदीप गायकवाड 


Batmikar
संपादक - अभिषेक शिंदे

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